Sunday, July 3, 2016

बनी हमारी रेल

शिव सैनिक सुरेश बुलाया
देश को गोया आस बँधाया
राधा माँगती नौ मन तेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

यात्री को ग्राहक बतलाया
रेल यात्री का मन हर्षाया
ग्राहक छोड़ रहे अब तेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

दीनदयालु डिब्बा जोड़ा
उँट के मुँह में जीरा छोड़ा
ट्रेन में होती ठेलममठेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

बुलेट ट्रेन का जाप सुनाया
टैल्गो का टेस्टिंग करवाया
गतिमान चली है रेल
तुम्हारी जय जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

सुविधा ट्रेन क्या खूब चलाया
सीट दिया कंगाल बनाया
ढ़न ढ़न चलती ये रेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

डायनेमिक फेयर जब लागा
एयरपोर्ट स्टेशन भागा
पर उड़ती नहीं है रेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

आइआरसीटीसी ठीक कराया
दल्लों ने भी सॉफ्टेयर लगाया
कर रहे टिकट होलसेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

नयी ट्रेन तुम नहीं चलाते
नये नये फार्मूले लाते
टाइमटेबल पहले सी फेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

रद्दीकरण प्रभार बढ़ाया
रद्द किया तो रद्दी पाया
थूक से सतुआ साने रेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

मोदी का स्वच्छ भारत  आया
बायो टॉयलेट खूब बनाया
अब उसी में रहे उड़ेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

ट्विट से यात्री ने फरमाया
दूथपिल्ली डायपर पहुँचाया
छछुन्दर के सर तेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

टीटी बाबू महल बनाए
रेल के हिस्से घाटा आए
कब होगा बंद ये खेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

रेल भवन में तूती बोले
पर छोटे बाबू  ना डोले
कसो न इनकी नकेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

मंत्री जी की मेहनत देखो
राज्यमंत्री की फितरत देखो
रजनीगंधा तुलसी मेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

रेल रोग है बहुत पुराना
मंत्री जी ना करें बहाना
दिला दो रेल को बेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

रेल के अच्छे दिन आ जाएं
हम विथना से यह गोहराएं
प्रभु जी ना हों फेल
तुम्हारी जय हो जय हो
बनी हमारी रेल
तुम्हारी जय हो जय हो

Sunday, March 20, 2016

सखी, वे इस होली आ जाते


 

सखी, वे इस होली आ जाते

बिना सूचना आ जाते, हम कदमों में बिछ जाते

जब से उनसे नेह है लागा

रहा न मेरा भाग्य अभागा

परिणय का ऐसा चटख है धागा

हम मन ही मन इतराते

सखी, वे इस होली आ जाते

धघक रही है विरह की ज्वाला

दूर देश वे पी रहे हाला

सौतन से पड़ जाए न पाला

हम सोचकर ही डर जाते

सखी, वे इस होली आ जाते

फोन पर शाम को प्यार की बातें

फिर करवट में बीतती रातें

चूड़ी गिन गिन हम थक जाते

व्हाट्स-एप मेसेज नहीं सुहाते

सखी, वे इस होली आ जाते

माना है जरुरी उनका जाना

होली में तो बनता है आना

चाहती हूँ उनको भी बताना

भले छठ पूजा नहीं आते

सखी, वे इस होली आ जाते

द्वार के जो सीकर बज जाते

भागकर हम दहलीज पर जाते

सामने जब हम उनको पाते

थोड़े हम शर्माते और बहुत सकुचाते

सखी, वे इस होली आ जाते

आज नहीं तो कल आएंगे

राग अनुराग अनुपम लाएंगे

विरहिणी के दिल हर्षाएंगे

पर फागुन बीतेगी तड़पाते

सखी, वे इस होली आ जाते

Monday, February 1, 2016

हमारे लोकतंत्र का सर्वर ही डाउन है

वर्षों से मूर्खों के सिर धरा क्राउन1 है
हीरो हमारा बन जाता एक क्लाउन2 है
नेता विशेषण, नहीं अब नाउन3 है
हमारे लोकतंत्र का सर्वर ही डाउन4 है

पहले दूसरे स्तम्भों में ब्रेकडाउन5 है
तीसरा स्तम्भ रह रहकर करता फ्राउन6 है
चौथे स्तम्भ पर छद्मी सेकुलर गाउन7 है
हमारे लोकतंत्र का सर्वर ही डाउन8 है

गाँव हैं बदरंग बदहाल टाउन9 है
वोटर का रंग हो रहा ग्रे-ब्राउन10 है
खरीदते हैं रेहु मिलता सड़ा प्राउन11 है
हमारे लोकतंत्र का सर्वर ही डाउन12 है

वादों का जिनके पास गोडाउन13 है
लुटियन में बैठे वो ले रहे याउन14 हैं
चुनावों में फिर होना अप-डाउन15 है
हमारे लोकतंत्र का सर्वर ही डाउन16 है

चुप रहें कैसे जब हो रहा सब ड्राउन17 है
सहकर अब नहीं होना काम-डाउन18 है
कभी तो कहेंगे आया नया डाउन19 है
हमारे लोकतंत्र का सर्वर ही डाउन20 है


1-     क्राउन – Crown
2-     क्लाउन- Clown
3-     नाउन – Noun
4-     डाउन – Down
5-     ब्रेक-डाउन – Breakdown
6-     फ्राउन – Frown
7-     गाउन – Gown
8-     डाउन – Down
9-     टाउन – Town
10-  ग्रे-ब्राउन – Grey-Brown
11-  प्राउन – Prawn
12-  डाउन – Down
13-  गोडाउन – Godown
14-  याउन – Yawn
15-  अप-डाउन – Up-down
16-  डाउन – Down
17-  ड्राउन – Drown
18-  काम-डाउन – Calm down
19-  डाउन – Dawn
20-  डाउन - Down









Sunday, August 9, 2015

चुनाव आ गइल का हो

चुनाव आ गइल का हो


नेता बारन लउकत

चमचा बारन फउँकत

भोटर बारन छउकत

चुनाव आ गइल का हो


सबका मुँहे जात बा

लमा लमा बात बा

पुरनके हालात बा

चुनाव आ गइल का हो


झंडन के रेल बा

पोस्टर के खेल बा

भोटर में ना मेल बा

चुनाव आ गइल का हो


बँटात बाटे पाउच

मचल बा डोमघाउच

लोकतंत्र करे उह आउच

चुनाव आ गइल का हो


शिलान्यास पर जोर बा

चारों ओरी शोर बा

लोकतंत्र के इहे भोर बा

चुनाव आ गइल का हो


सपना बेचात बा

विकास तउलात बा

भोटर बउरात बा

चुनाव आ गइल का हो


बखोर सब चहेटाई

नीमन लोग चुनाई

हम इहे गोहराईं

चुनाव आ गइल का हो

Friday, May 29, 2015

स्मृति शब्द चित्र - 1

स्मृति शब्दचित्र : स्व नगनारायण दुबे

रविवार की एक दोपहर अचानक पंड़ित जी याद आ गये और उनकी स्मृति में मैं एक शब्द चित्र बनाने लगा. यकीन करिए - यहाँ वर्णित घटनाएँ घटित हैं, रचित नहीं. पात्र और उनके नाम तक वास्तविक हैं.

पंडित जी से मेरा पहला साक्षात्कार तब हुआ था जब मैं १०-११ वर्ष का था. एक दिन मैं अपने पुराने खपरैल घर की खिड़की पर खड़ा होकर खइके पान बनारस वाला…’ गा रहा था. हमारे घर के पीछे स्थित अपने घर के दुआर पर बैठे पंडित जी ने मुझे गाते हुए सुना और बोले; "देखs लइका केतना चनसगर बा, सुग्गा जइसन गावत बा आ टाँसी जइसन गला बा (देखो बालक कितना सुरीला गा रहा है, बहुत होनहार है )."

पंडित जी का पूरा नाम नगनारायण दुबे था. छह फीट से ज्यादा उँचे पंडित जी की कद काठी सेना के किसी फिट कर्नल जैसी थी, रंग गेहुँआ था. पंडित जी स्कूल गये थे क्योंकि उन्हे 'रामs गति देहु सुमति' (उन दिनों विद्यालयों में पहला पाठ यही होता था ) कंठस्थ  याद था.  बहरहाल, उनकी शिक्षा चाहे जितनी हो पर वह निर्विवाद रुप से गाँव के सर्वकालीन निश्छल व्यक्तियों में से एक थे. यही निश्छलता उन्हे गाँव में आदरणीय बनाती थी. निश्छलता के साथ हकलाकर बोलना भी उनकी एक यूएसपी थी.

एक बार पंडित जी की एक दूसरे पंडित जी से कहा सुनी हो गयी. गुस्से में दुबे जी बोले; "ह...ह... हमार नाम हs न...न...नगनारायन दुबे (मेरा नाम नगनारायण दुबे है)." जबाब मिला; "आ हमार नाम हs तिरलोकी नाथ मिसिर (और मेरा नाम है त्रिलोकीनाथ मिश्र)." दोनों पंडित जी ने अपने अपने नाम इस तेवर से बताए गोया पहले जने पूरे नगर के नारायण हों और दूसरे तीनों लोकों को स्वामी.  एक दूसरी घटना में पंडित जी गाँव के जबार मियाँ पर इतने क्रुद्ध हुए कि लंबी छर्र वाला अपना भाला लेकर आ गये. वार करने के लिए भाले को पीछे खींचा ही थी कि पंडित जी कराहकर गिर पड़े क्योंकि भारी तनाव में वह भाले की नोंक गलती से अपनी ओर कर बैठे थे. कहते हैं कि घायल पंडित जी को जबार मियाँ ही सरकारी अस्पताल ले गये थे.

पंडित जी के दो पुत्र थे – किशोर दुबे और जयकिशोर दुबे. मेरे बाबा बताते थे कि उनके बड़े बेटे किशोर दुबे की शादी के लिए एक पंडित जी आए थे जो मेरे बाबा के परिचित थे. शादी की बात चली तो पंडित जी  5000 रुपया तिलक की माँग पर अड़ गये. ७० के दशक में दहेज की यह राशि बहुत बड़ी थी. वधु पक्ष इतनी बड़ी राशि देने में सक्षम नहीं था. मेरे बाबा ने हस्तक्षेप किया; "पंडिज्जी जी हमरा नाम पर कुछ कम करेब (पंडित जी मेर नाम पर कुछ कम करेंगे )?" पंडित जी बोले ; "बो...बो...बोलीं  म...म...माट्ट साहेब बोलीं (बोलिए मास्टर साहब बोलिए )." बाबा ने लोहा गर्म देखकर चोट किया; "एगो सुन्ना कम कर दीं पंडिज्जी (एक शून्य कम कर दीजिए पंडित जी)." पंडित जी का निश्छल उत्तर आया; "ए...ए... एगो सुन्ना से नगनारायन के कवनो कोन भूसा ना टेढ़ होई, जाईं मंजूर बा ( एक शून्य से नगनारायण का कुछ नहीं बिगड़ेगा, जाइए मंजूर है )." और फिर पंडित जी के बड़े पुत्र की शादी तय हो गयी. तिलक के रुप में क्या लेन देन हुआ, इसकी कोई पक्की जानकारी नहीं. 

एक दिन अपने दलान में बैठे पंडित जी की किसी बात पर अपने ज्येष्ठ पुत्र राजकिशोर दुबे से बहस हो गयी. राजकिशोर दुबे अकड़ते हुए बोले; "हमरा का चिन्ता बा, हम दुगो हाथी पोसले बानी (मुझे क्या चिन्ता, मेंरे पास दो दो हाथी हैं )." दो हाथियों से राजकिशोर दुबे का अभिप्राय अपने दो पुत्रों से था. इस पर पंडित जी चुप कैसे रहते, बोले; "ब...ब... बबुआ ह...ह... हमहु दुगो हाथी पो...पो... पोसले रनी हs, एगो तू हउअs (मेरे पास भी दो हाथी थे, उन्ही में से एक तुम हो)." पर बहस खत्म नहीं हुई. पंडित जी ने अपने बेटे को शास्त्रार्थ की चुनौती दे डाली. शास्त्रों और मंत्रों से पंडित जी का एक्सपोजर इस बात से समझा जा सकता है. एक बार पंडित जी ने ईंट का भठ्ठा लगाया. भठ्ठे की पूजा स्वयं करवा रहे थे और उनके बड़े पुत्र पूजा पर बैठे थे. पूरी पूजा के दौरान पंडित जी एक ही मंत्र पढ़ते रहे; "म...म... मसूरी के दाल भ...भ... भठ्ठा लाले लाल... (मसूरी के दाल जैसा भठ्ठे का ईंट लाल हो)" और बीच बीच में "कि...कि... किशोरवा टीक छू ले (किशोर अपनी शिखा छू लो )" कहते रहे.

एक बार राजपूतों के आपसी झगड़े में पंडित जी पुलिस थाने के चक्कर में पड़ गये . उससे फारिग होकर मेरे पापा से मिले और बोले; "आज से तहनी चहवनवन के फेरा में ना परेब बबुओ (बबुआ अब फिर में तुम चौहानों के चक्कर में नहीं पड़ूँगा)." ऐसे अनेकों संस्मरण आज भी स्मृति पटल पर अंकित हैं. पर उन सबको यहाँ रखूँ तो  आलेख के लंबा और बोझिल हो जाने का खतरा है और आपके न पढ़ने का जोखिम भी. फिर कभी संयोग बना तो जरुर लिखूँगा.

पंड़ित जी को मेरी तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि !