Sunday, March 20, 2016

सखी, वे इस होली आ जाते


 

सखी, वे इस होली आ जाते

बिना सूचना आ जाते, हम कदमों में बिछ जाते

जब से उनसे नेह है लागा

रहा न मेरा भाग्य अभागा

परिणय का ऐसा चटख है धागा

हम मन ही मन इतराते

सखी, वे इस होली आ जाते

धघक रही है विरह की ज्वाला

दूर देश वे पी रहे हाला

सौतन से पड़ जाए न पाला

हम सोचकर ही डर जाते

सखी, वे इस होली आ जाते

फोन पर शाम को प्यार की बातें

फिर करवट में बीतती रातें

चूड़ी गिन गिन हम थक जाते

व्हाट्स-एप मेसेज नहीं सुहाते

सखी, वे इस होली आ जाते

माना है जरुरी उनका जाना

होली में तो बनता है आना

चाहती हूँ उनको भी बताना

भले छठ पूजा नहीं आते

सखी, वे इस होली आ जाते

द्वार के जो सीकर बज जाते

भागकर हम दहलीज पर जाते

सामने जब हम उनको पाते

थोड़े हम शर्माते और बहुत सकुचाते

सखी, वे इस होली आ जाते

आज नहीं तो कल आएंगे

राग अनुराग अनुपम लाएंगे

विरहिणी के दिल हर्षाएंगे

पर फागुन बीतेगी तड़पाते

सखी, वे इस होली आ जाते

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