सखी, वे इस होली आ जाते
बिना सूचना आ जाते, हम कदमों में बिछ जाते
जब से उनसे नेह है लागा
रहा न मेरा भाग्य अभागा
परिणय का ऐसा चटख है धागा
हम मन ही मन इतराते
सखी, वे इस होली आ जाते
धघक रही है विरह की ज्वाला
दूर देश वे पी रहे हाला
सौतन से पड़ जाए न पाला
हम सोचकर ही डर जाते
सखी, वे इस होली आ जाते
फोन पर शाम को प्यार की बातें
फिर करवट में बीतती रातें
चूड़ी गिन गिन हम थक जाते
व्हाट्स-एप मेसेज नहीं सुहाते
सखी, वे इस होली आ जाते
माना है जरुरी उनका जाना
होली में तो बनता है आना
चाहती हूँ उनको भी बताना
भले छठ पूजा नहीं आते
सखी, वे इस होली आ जाते
द्वार के जो सीकर बज जाते
भागकर हम दहलीज पर जाते
सामने जब हम उनको पाते
थोड़े हम शर्माते और बहुत सकुचाते
सखी, वे इस होली आ जाते
आज नहीं तो कल आएंगे
राग अनुराग अनुपम लाएंगे
विरहिणी के दिल हर्षाएंगे
पर फागुन बीतेगी तड़पाते
सखी, वे इस होली आ जाते
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